प्रेमानंद जी के अनुसार, सुबह जल्दी उठने की आदत विकसित करना कोई कठिन कार्य नहीं है, बशर्ते व्यक्ति अपने मन को इसके लिए तैयार करे। यदि किसी को सुबह उठने में कठिनाई होती है, तो इसका समाधान मानसिक तैयारी में छिपा है।
गहरा चिंतन: प्रेमानंद जी का सुझाव है कि व्यक्ति को एक रात पहले ही गहरा चिंतन करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि सोने से पहले, व्यक्ति अपने मन में यह ठान ले कि उसे सुबह एक निश्चित समय पर उठना है। यह मानसिक तैयारी दिमाग को सिग्नल देती है कि उसे अगले दिन किस समय सक्रिय होना है।
समय निर्धारण: मान लें कि आपको सुबह 4 बजे उठना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सोने से पहले अपने मन में इस विचार को गहराई से स्थापित कर लें कि सुबह 4 बजे उठना है। यह ध्यान और समय की स्पष्टता दिमाग में एक प्रकार की चेतना उत्पन्न करती है, जो व्यक्ति को उस समय जगाने में मदद करती है।
स्वाभाविक जागरण: जब आप इस प्रक्रिया को अपनाते हैं, तो आपका दिमाग निर्धारित समय के करीब खुद-ब-खुद सक्रिय हो जाता है। सुबह 4 बजे आपके दिमाग में उठने का विचार आएगा और आप बिना किसी बाहरी अलार्म की आवश्यकता के जाग जाएंगे। यह प्रक्रिया पूरी तरह से मानसिक शक्ति और दिमाग की चेतना पर निर्भर करती है।
फिर से सोने का प्रयास: हालांकि, यदि आप उठने के बाद फिर से करवट लेकर सोने का प्रयास करते हैं, तो वह आपकी अलग व्यक्तिगत आदत हो सकती है। इस स्थिति में, मानसिक दृढ़ता और आत्म-अनुशासन की आवश्यकता होती है ताकि आप उठने के बाद पुनः सोने से बच सकें और अपनी दिनचर्या को सही दिशा में बनाए रख सकें।
निष्कर्ष: प्रेमानंद जी का यह तरीका न केवल शरीर के लिए उपयोगी है, बल्कि मानसिक शक्ति और अनुशासन का भी प्रतीक है। यदि आप इस तकनीक को गंभीरता से अपनाते हैं, तो न केवल सुबह जल्दी उठने की आदत विकसित कर सकते हैं, बल्कि अपनी दिनचर्या को भी प्रभावी रूप से नियंत्रित कर सकते हैं।